TSA न्यूज़ सर्विस देहरादून|
उत्तराखंड की सियासत में बड़ा विस्फोट हो चुका है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एव वर्तमान हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पार्टी लाइन से ऊपर उठकर मौजूदा राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। लोकसभा में उनके तीखे हमले ने यह साफ कर दिया कि वे सत्ता के भ्रष्टाचार पर चुप बैठने वाले नहीं हैं। सबसे बड़ा सवाल नए मुख्य सचिव की नियुक्ति को लेकर खड़ा हुआ है। फॉरेस्ट घोटाले में जिनके खिलाफ खुद मुख्यमंत्री धामी ने जांच बिठाई थी, वही अब ऊंचे पद पर बैठा दिए गए हैं। चर्चा यह भी है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अजीत डोभाल की मदद से यह नियुक्ति करवाई। क्या यह त्रिवेंद्र की सियासी चाल है? क्या अब आनंद वर्धन के जरिए त्रिवेंद्र सिंह रावत उत्तराखंड में पर्दे के पीछे से अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं? त्रिवेंद्र सिंह रावत ने लोकसभा में धामी सरकार की पोल खोलकर रख दी। उन्होंने साफ कहा कि जब सत्ता जनता के साथ अन्याय पर उतर आए, तो उसके खिलाफ खड़ा होना ही असली नेतृत्व है। धामी सरकार अब खुद को बचाने के लिए नौकरशाही की आड़ ले रही है, लेकिन त्रिवेंद्र का हमला इतना तीखा है कि सच्चाई छिप नहीं सकती। क्या धामी सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है? सत्ता के गलियारों में अब हलचल तेज हो चुकी है। हवा का रुख बदल चुका है, और संकेत साफ हैं जल्द ही बड़ा राजनीतिक विस्फोट देखने को मिलेगा।
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में हरिद्वार लोकसभा सीट से भाजपा सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत विगत कुछ दिनों से प्रदेश की राजनीति में छाए हुए हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत की चर्चा का कारण लोकसभा में उनके द्वारा उठाए गए उत्तराखंड के वो मुद्दे हैं, जिन पर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने भी उनकी तारीफ की है। पहली बार नहीं है कि त्रिवेंद्र सिंह इतने मुखर दिखे, बल्कि इससे पहले भी वो उत्तराखंड के कई ऐसे मुद्दे उठा चुके हैं, जिसने बीजेपी संगठन और धामी सरकार को असहज किया है। धामी सरकार में त्रिवेंद्र का सबसे पहला बयान उत्तराखंड अधीनस्थ चयन सेवा आयोग (यूकेएसएसएससी) को भंग करने का था। त्रिवेंद्र चाहते थे कि यूकेएसएसएससी को भंग करने देना चाहिए। इसके बाद त्रिवेंद्र ने विधानसभा में हुई नियुक्तियों को लेकर भी बयान दिया। त्रिवेंद्र ने कहा कि उत्तराखंड विधानसभा में भाई-भतीजावाद से जो भी नौकरियां लगी हैं, उनकी सीबीआई जांच होनी चाहिए। उन्होंने विधानसभा की भर्ती को सार्वजनिक रूप से नियमों के खिलाफ भी बताया था। उत्तराखंड विधानसभा बैकडोर भर्ती के बाद त्रिवेंद्र ने पुलिस की भर्ती को लेकर भी सवाल खड़े किए थे। उन्होंने कहा था कि भर्तियों में गड़बड़ी बेरोजगार युवाओं के साथ धोखे की तरह होती है।
यह त्रिवेंद्र सिंह रावत ही थे, जिन्होंने यूकेएसएसएससी पेपर लीक मामले में जांच की सबसे पहले मांग उठाई थी। इतना ही नहीं अंकित भंडारी मामले पर भी उन्होंने सरकार को किसी भी तरह की जल्दबाजी न करने की सलाह दी थी। इसके अलावा खानपुर विधायक और पूर्व विधायक प्रणव सिंह चैंपियन के मामले पर भी त्रिवेंद्र सिंह का बयान आया था। उन्होंने कहा था कि यदि वो सीएम होते तो सबसे पहले पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई करते। इसके साथ ही त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रेमचंद अग्रवाल के विवादित बयान की भी निंदा की थी। बीते साल 2024 में जब चारधाम यात्रा में अव्यवस्था फैली थी, तब भी त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी सरकार के उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड की याद दिलाई थी, जिसे धामी सरकार ने भंग कर दिया था। ये वो तमाम मुद्दे है, जिनको लेकर कही न कही त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी ही सरकार को घेरने का काम किया। हालांकि त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस आक्रामक रवैये से कांग्रेस को बीजेपी संगठन और सरकार पर हमला करने का मौका मिल जाता है।